सनातन धर्म की हानि कब हुई ?

  धर्मसंस्थापनार्थाय- सृष्टि के  आदि  में  सनातन धर्म की  स्थापना  स्वयं परमात्मा ने  की थी  |  परंपरा से प्राप्त सनातन धर्म मे कई  युग व्यतीत होने पर हानि हो गई | द्वापर युग मे धर्म की हानि हो गई ओर अधर्म ने  कलि का रूप धारण कर लिया |   श्री   कृष्ण भगवान ने गीता मे जो उपदेश दिया है वही सनातन धर्म है | 






यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।



 जब -जब धर्मकी हानि और अधर्मकी वृद्धि होती है, तब-तब ही भगवान् धर्मकी संस्थापना करने के लिये  अवतार लेते हैं।

श्री कृष्ण भगवान् गीता मे  बोले - मैंने इस  अविनाशी सनातन धर्म  को सूर्य से कहा था। फिर सूर्यने (अपने पुत्र) वैवस्वत मनुसे कहा और मनुने (अपने पुत्र) राजा इक्ष्वाकुसे कहा। परंपरा से यह सनातन धर्म आगे प्राप्त होता रहा |


सनातन धर्म की  स्थापना कृष्ण  भगवान् ने की ,  धर्मकी संस्थापना करनेके लिये भगवान् अवतार लेते हैं। संस्थापना करनेका अर्थ है-- सम्यक् स्थापना करना। तात्पर्य है कि धर्म का कभी नाश नहीं होता, केवल ह्रास होता है। धर्मका ह्रास होनेपर भगवान् पुनः उसकी अच्छी तरह पुनः  स्थापना करते हैं |


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